Sunday 23 August 2015

इंद्र ने पूछा है
कि
क्या गुरू को भी, अपने ,शिष्यों की आवश्यकता होती है?
और

यदि हां, तो दोनों की आवश्यकता में क्या अंतर हुआ?
उत्तर:
इंद्र
जब तकइस संसार मेंहमें देह प्राप्त हैतब तक
सबको ,एक दूसरे की आवश्यकता होती है।
देह को,सदा,एक दूसरे की आवश्यकता होती है।
जीवनभीतर और बाहरकासंतुलन है।
शिष्य का संतुलन इस लिए टूटा हुआ है कि उसे भीतर का ज्ञान नहीं है।
और
गुरू ने अपना संतुलन स्वयं खो दिया है क्योंकि वह अपने अंतरतम में विराजमान हो गया है।
इस संतुलन को पुनः स्थापित करने के लिए गुरू
अपने,बाहरी जीवन के लिए ,अपने शिष्यों पर निर्भर होता है।
वह
अपने,शिष्यों के माध्यम से संसार में
अपने को "अभिव्यक्त" कर सकता है।
इसके विपरीत शिष्य को अपनी  "भीतर की यात्रा "
के लिए  अपने  गुरू की आवश्यकता पड़ती है।दोनो की आवश्यकताओं में भेद:
गुरू संसार में केवल अभिव्यक्ति के लिए ,अपने शिष्य पर निर्भर होता है पर "आश्रित" नहीं।
परतुं
शिष्य,गुरू पर "आश्रित" होता है,  निर्भर ,मात्र नही।
उदाहरण
कृष्ण को धर्म युद्ध के लिए  अर्जुन की आवश्यकता पड़ी। वे, स्वयं ,सभी कलाओं में निपुण होने के पश्चात भी, अर्जुन के माध्यम से, युद्ध करने के लिए बाध्य थे।
परतुं
अर्जुन को उसी युद्ध में ,विजयी होने के लिए, कृष्ण पर  अध्यात्मिक ज्ञान के लिए , उनका, शिष्य होना पड़ा था। अर्जुन ,कृष्ण पर "आश्रित" था  और  कृष्ण, "अर्जुन" पर निर्भर। सदैव याद रखें बडे़,छोटो पर "निर्भर" होते हैं और छोटे,बडे़ पर "आश्रित"।

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