Thursday 27 November 2014

Discontent – Tool to Reach “Inner self”

Discontent – Tool to Reach
“Inner self”


If we get fully contended with what we" ARE",

We would become discontented for what we can "BE". 

This “discontenting” is transformed to intelligence. 


"Intelligence" explores "self potential"

"Fragrance" needs "fragility"

"Fragrance" needs "fragility"

"Flower"
is very "fragrant" but simultaneously "fragile". 



Nobody can distribute fragrance to this world and simultaneously remain ROCK like solid. 
It is impossible

God is the most fragrant non element.
Godly person is flower like
HE can "wither" anytime in anyway.

 
Simple a breeze of air, direct sunlight, someone's touch orin anyway


Be careful of becoming "GOD"
YOU would become fragrant and withered.



"आदान प्रदान" या "उपयोग


"आदान प्रदान" या "उपयोग"


जीवन  "आदान प्रदान" से संबधित होता है।
संबधों में एक दूसरे से आदान- प्रदान होना चाहिए,
एक -दूसरे का "उपयोग" नहीं

दूसरे का उपयोग ,अपने स्वार्थ के लिए करने से ,संबंधों में मधुरता समाप्त हो जाती है
केवल "प्रेम" आधार पर आदान प्रदान संभव है

Tuesday 18 November 2014

"माँग भरो सजना"


"माँग भरो सजना" 
विवाह के समय पति ,”पत्नी की "माँग" भरता है।

उसके बाद
"पत्नी", पति का "जीवन" सभी तरह की "मांगों" से।


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"CLOTHES" REFLECT INNER STATE OF “MIND”

1
IF YOU ARE "INDECISIVE" ABOUT CHOOSING YOUR CLOTHES
YOU ARE "IRRITABLE" TYPE PERSON


2.
IF YOU ARE "FOND" OF PURCHASING EXPENSIV CLOTHES
YOU WOULD BE "LAZY" TYPE PERSON.

3.
IF YOU ARE COMFORTABLE WITH ANY TYPE OF CLOTHES (MAY BE RAGGED OR EXPENSIVE CLOTHES)
YOU ARE "FLUCTUATING",”RESTLESS” AND “PSEUDO CONFIDENT” TYPE PERSON

4.
IF YOU ARE OF THIRD TYPE & AWARE OF YOUR TYPE, YOU ARE "INNNERLY" BEAUTIFUL

CLOTHES REFLECT “MIND”




"CLOTHES" REFLECT INNER STATE OF “MIND”

1
IF YOU ARE "INDECISIVE" ABOUT CHOOSING YOUR CLOTHES
YOU ARE "IRRITABLE" TYPE PERSON


2.
IF YOU ARE "FOND" OF PURCHASING EXPENSIVE CLOTHES
YOU WOULD BE "LAZY" TYPE PERSON.

3.
IF YOU ARE COMFORTABLE WITH ANY TYPE OF CLOTHES (MAY BE RAGGED OR EXPENSIVE CLOTHES)
YOU ARE "FLUCTUATING",”RESTLESS” AND “PSEUDO CONFIDENT” TYPE PERSON

4.
IF YOU ARE OF THIRD TYPE & AWARE OF YOUR TYPE, YOU ARE "INNNERLY" BEAUTIFUL

Saturday 8 November 2014

"दुरी की महिमा "

"दुरी की महिमा "

"प्रतिष्ठित" व्यक्ति से दूरी रखने पर  ही,  उसके" बड़े पन "का झूठ बना रहता  है।









उसको "समीप" से जानने  पर उसकी "छुद्रता"  का बोध होता  है।


"परमात्म" रूप व्यक्ति को "समीप" से जानने  पर "ही" उसकी "विराटता "की प्रतीति  होती  है

और
दूर से देखने पर वह "छुद्र" प्रतीत होता है ।




"मोह"

अति  बहुमूलय  सूत्र 



जब तक  हमारे  "भीतर" से  कुछ उत्त्पन नहीं होता ,  "आत्मा"
  उदास व "मन" अस्थिर रहता है I 

उदहारण  
यदि हमारे  पास  अपनी मेहनत से  अर्जित की हुई नौकरी नही या अपने से बनाया हुआ घर नहीं , या आपने से उत्त्पन हुई संतान नहीं'
तब तक हमारी आत्मा अप्रसन्न और मन अस्थिर रहता है I 
         क्यों ?

क्योंकि 
हर व्यक्ति की "आत्मा " स्वयं से कुछ "उत्पन्न" कर , पूर्णता अनुभव करती  है।

स्मरण योग्य
"पूर्णता "आनंद" का अनुभव देती है"


समझने योग्य:
यदि अपने से कुछ उतपन्न ""नहीं"" होता, तो आत्मा "अतृप्त" रहतीं है।
यदि अपने से कुछ भी उतपन्न "हो" जाता है, तो मन उसके  "मोह" से बंध कर "व्याकुल" होता रहता है।
अपने से  उत्पन्न की हुई वस्तु या व्यक्ति से मनुष्य का मोह ,उसी के लिए बाधा भी बन जाता है।


संकट:
पैदा "न" हो तो "उदासी " 


और
पैदा "हो" जाए तो मोह के बंधन का "आजीवन"  का कारागृह!



"इधर खाई उधर गढा"