Thursday 19 March 2015

DIFFICULTIES DO NOT MAKE LIFE DIFFICULT


Life is not difficult.








Difficulties do not make it difficult.
 Ambitions and desire to live a lethargic and a life of comforts make it difficult.











Restlessness of in completion of a task sometimes is felt as difficulty. 

Be aware of this
Restlessness.


This restlessness wants to find a way of completion. 
If this restlessness is not understood well in time, the valuable asset is thrown.


Restlessness is a valuable asset. 
Restlessness can be fullness of rest some day if meditated and understood properly.

"असंभव में उत्सुकता

जो मिल जाता है
उसका
कोई "मूल्य" नहीं रह जाता।

जिसमें
मूल्य
नही रह जाता
उसमें कोई उत्सुकता नहीं होती।

उत्सुकता के बिना "मन" नहीं रह सकता

मन को जिंदा रखने के लिए कोई असाध्य लक्ष्य चाहिए।



असाध्य लक्ष्य,असंभव होता है ।

असंभव मिल नहीं पाता इसलिए उसका मूल्य हमेशा रहता है ।

और जिसका मूल्य रह जाता है उसमें मन लगा रहता है।

अर्थात
मन
"असंभव" में लगा रहता है।
जैसे
"देहांत" के साथ
"देह" के सभी
रोग
"समाप्त" हो जाते हैं
उसी
प्रकार
ध्यान "उपलब्ध" होने पर
मन के सभी रोग समाप्त
हो जाते हैं।
"मनांत"(मन का अंत)
हो जाता है
और
पुनः देह में
जीने की
आवश्यकता नहीं होती।
"मनांत" ही ठीक "देहांत" है

मन का अंत ही "मोक्ष" है ।
 हमारे पास सबकुछ है
परंतु
"ईश्वर" के बिना
हमारा
सब कुछ
एक क्षण में ही
व्यर्थ हो जाएगा। 

इसका अर्थ यह हुआ 
हमें 
उसके "साथ" की आवश्यकता है।

"पति और पत्नी"

सामान्य रूप से पुरूष को स्त्री के 
                    "तन"
से प्रेम होता है । और स्त्री को पुरुष के 
                 "मन" से।

इसलिये पुरूष,"पति" बनने के बाद ,अपनी पत्नी के शरीर से बंधा रहता है। इसके दुष्परिणाम होते हैं।

1. यदि "पत्नी" किसी कारणवश दांपत्य जीवन में पति को सहयोग न        कर पाए तो पति "रूष्ट "रहेगा।
2. यदि पत्नी पति के परिवार मे अपना "तन और मन" का योगदान न
दे पाए
                 

पति अपनी पत्नी से 
तोरूष्ट ही रहेगा ।


अर्थात

"पत्नी" यदि "पति "के हर तरह के शारीरिक सुखों का ध्यान रखने में "असक्षम" रहती है तो पति और पत्नी का संबध "औपचारिक" ही रहेगा।

और

यदि 

"पत्नी" यह करने में "सक्षम" होती है तो यह संबध "झूठा" रहेगा 
क्योंकि ""आधार" तो "शारीरिक सुख " का आदान प्रदान है। 
इस 

"आधार"
के समाप्त होते ही "संबंध" भी समाप्त हो जाएगे।

इसी प्रकार" पति "यदि अपना मन पत्नी को समर्पित नहीं करे तो 
पत्नी रूष्ट रहेगी।

तबतो यह हुआ कि पति पत्नी से शारीरिक सुखों की मांग के कारण जुडा है
और
पत्नी पति से ,मन की मांग के कारण।

"दो मागने"
वाले एक -दूसरे को 
क्या देगे ?

"पति और पत्नी"
कभी भी
"पति पत्नी"
नही हो पाते
यही 
दांम्पत्य जीवन का दुख है ।

पति और पत्नी के बीच का यह "और" कभी मिट नहीं पाता!
तनिक विचारो भाई?

"विचार का महत्व"

"विचार का महत्व" 

"विचार" ही करते रहे तो निर्णय नहीं होता।

उदाहरण:


सेना में 
DO or DIE की देशना होती है

क्यो?


क्योंकि विचार करते रहने से सैनिक शत्रु की हत्या नहीं कर सकता।

निसप्ति:(conclusion)

निरंतर विचार करते रहने से निर्णय नहीं होता।
          और

यदि बिना विचार के जीवन जीया जाए  तो गलत निर्णय होते हैं।

उदाहरण :

यदि हिरोशिमा पर बम गिराने से पहले सैनिक ने विचार किया होता तो नरसंहार बच जाता।
 
बिना विचार किये चलने से दुर्घटना ही होती है।

तो

विचार निर्णय को रोक कर असहयोगी भी हो सकता है
और सुविचार सहयोगी भी हो सकता है । अब यह कैसे किया जाए
कि सम्यक विचार की दक्षता उपलब्ध हो?

तनिक विचारो भाई?
जो

अपने प्राणों की परवाह नहीं करते:  वीर/सहासी/शहीद

जो


अपने प्राणों की परवाह करते हुए,प्राणों को जोखिम में डालते हैं: 


समाजिक "प्रतिष्ठित" व्यक्ति

जो


अपने प्राणों की चिंता में ,कोई जोखिम "नहीं" उठाते:साधारण व्यक्ति

जो


अपने प्राणों को जानते हैं, "असाधारण" व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठित 


व्यक्ति ,वीर साहसी और शहीदों के गुणगान करते 

हैं

और


आसाधारण व्यक्तियों को उनके जीवन काल में दंड और उनके मरने के 


बाद श्राधंजली देते हैं



साधारण व्यक्तियों को मूर्ख बना कर जीवन भर 
राजनीति करते हैं।

How does mind feel attached ?

 प्रशन:
मन मोह कैसे करता है?



उत्तर 
मन, जब काम करने में संघर्षरत होता है 
तब
अहंकार निर्मित होता है ।
अहंकार मोह उत्पन्न करता है ।
समझे :
आदमी किसी गहरे दुख में आत्महत्या का विचार क्यो कर पाता है ।
उदाहरण
यदि किसी की भरसक प्रयत्न करके कमाई गई संपत्ति का नुकसान हो जाए तो वह शरीर त्यागने को तैयार हो जाता है ।
क्योकि
संपति को अर्जित और इकठ्ठा करने में संघर्ष करना पड़ता है
और
संघर्ष से जो भी मिलता है उससे मोह हो जाता है।
इसके विपरीत
शरीर पाने में हमें कुछ संघर्ष नही करना पड़ा
वह
ईश्वर ने प्रसाद रूप में दिया है तो
उसके साथ मोह उत्पन्न नही होता और आत्महत्या का विचार आ जाता है।
तो सूत्र यह हुआ
मन=संघर्ष=मोह=मेरा=बंधन
मन=सहज=प्रसाद रूप=मुक्तिबोध



: जीवन में "श्रम" तो हो 

पर 
"संघर्ष " रति मात्र नही। 
तब
जो भी उपलब्धि होगी
उसमें
मोह नहीं होगा।
और
जब
मोह नहीं है
तो
आनंद ही आनंद।


English version of above

Question:

How does mind feel attached ?


 Ans
An Act of "Effort" creates an attachment. 
If efforts are not done,mind feels impotent to feel attached. 

Let's understand in this way
Everyone gets an idea of suicide in his lifetime due to one or other reason
Eg
If someone looses his hard earned money he thinks of committing suicide?
Why?
Because money is earned and gathered with much effort where as body is gift of God available to us without any effort or our investment so we can think of committing suicide. 
Hence
Effort brings attachment
If we don't put effort,we don't feel attachment.
 Continue to do work
But
Don't put effort
Do
"Effortless effort"