Thursday 19 March 2015

"पति और पत्नी"

सामान्य रूप से पुरूष को स्त्री के 
                    "तन"
से प्रेम होता है । और स्त्री को पुरुष के 
                 "मन" से।

इसलिये पुरूष,"पति" बनने के बाद ,अपनी पत्नी के शरीर से बंधा रहता है। इसके दुष्परिणाम होते हैं।

1. यदि "पत्नी" किसी कारणवश दांपत्य जीवन में पति को सहयोग न        कर पाए तो पति "रूष्ट "रहेगा।
2. यदि पत्नी पति के परिवार मे अपना "तन और मन" का योगदान न
दे पाए
                 

पति अपनी पत्नी से 
तोरूष्ट ही रहेगा ।


अर्थात

"पत्नी" यदि "पति "के हर तरह के शारीरिक सुखों का ध्यान रखने में "असक्षम" रहती है तो पति और पत्नी का संबध "औपचारिक" ही रहेगा।

और

यदि 

"पत्नी" यह करने में "सक्षम" होती है तो यह संबध "झूठा" रहेगा 
क्योंकि ""आधार" तो "शारीरिक सुख " का आदान प्रदान है। 
इस 

"आधार"
के समाप्त होते ही "संबंध" भी समाप्त हो जाएगे।

इसी प्रकार" पति "यदि अपना मन पत्नी को समर्पित नहीं करे तो 
पत्नी रूष्ट रहेगी।

तबतो यह हुआ कि पति पत्नी से शारीरिक सुखों की मांग के कारण जुडा है
और
पत्नी पति से ,मन की मांग के कारण।

"दो मागने"
वाले एक -दूसरे को 
क्या देगे ?

"पति और पत्नी"
कभी भी
"पति पत्नी"
नही हो पाते
यही 
दांम्पत्य जीवन का दुख है ।

पति और पत्नी के बीच का यह "और" कभी मिट नहीं पाता!
तनिक विचारो भाई?

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