Sunday 23 August 2015

नीरजा ने पूछा है
BS
मैं एक आत्मनिर्भर महिला हूँ।
मैं,विश्वविधालय मे,
उच्च स्तरीय पद पर कार्यरत हूँ
पर
फिर भी
मैं
मुक्तता को अनुभव नही करती।
मैं,आत्मनिर्भर होने के बाद भी,
सामाजिक और भावनात्मक तल पर
अपने को बंधा हुआ
अनुभव करती हूँ।
क्या ,मेरे लिए
आपके पास
कोई
संदेश है?
उत्तर
नीरजा
जीवन दूसरे पर "आश्रित" न हो जाए,
इसका तो उपाय किया जा सकता है
और
जीवन ,"आत्मनिर्भर" हो, इसका भी आयोजन किया जा सकता है
परतुं
जब तक आत्मा,देह में निवास करती है तब तक देह,
दूसरे से मुक्त हो जाए और आश्रित न हो
यह
अंहकार का असंभव
प्रयास है।
नीरजा
हम
स्वावलंबी और आत्मनिर्भर
होते
ही
यह,भुला देते हैं
कि हम
अभी भी
भावनात्मक रूप से
दूसरे
पर निर्भर है।
अहंकार की यह सोच
कि
आर्थिक और सामाजिक
स्वतंत्रता मिलने के बाद
चेतना
पूर्णता "मुक्त" अनुभव करेगी
अहंकार की
मूर्खता है।
अंहकार की यह मूर्खता ही बंधन का भाव ला रही है ।
अपने
स्वावलंबी और किसी पर भी "आश्रित " नहीं होने के अहंकार के प्रति सजगता लाओ।
तभी
तुम
मुक्त
अनुभव करोगी।

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