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कृष्ण की गीता मुझे कंठस्थ हैं
परतुं
कृष्ण की गीता को ,जीवन में, प्रति पल कैसे जीए?
परतुं
कृष्ण की गीता को ,जीवन में, प्रति पल कैसे जीए?
उत्तर :
अभिलाषा
अभिलाषा
मेरी दृष्टि में
"गीता" का एक ही "उपदेश" है
"गीता" का एक ही "उपदेश" है
वह यह है
कि
"अपने" काम से भागो "नही"
"उसके" काम में आओ "नही"।
"उसके" काम में आओ "नही"।
जीवन को "खेल" की भांति जीना ,हमारा काम है और
जीवन मरण का खेल बनाना ,उसका काम है।
जीवन मरण का खेल बनाना ,उसका काम है।
मनुष्य का चित
इसके
विपरीत चलता है।
यही
उस की "समस्या" का कारण है।
इसके
विपरीत चलता है।
यही
उस की "समस्या" का कारण है।
तो
"अपने" काम से "भागो" नही
और
"उसके "काम में भाभागीदार मत बनो।
"अपने" काम से "भागो" नही
और
"उसके "काम में भाभागीदार मत बनो।
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