सारिका ने पूछा है
कि
गुरू
अपने शिष्यों से धन क्यो लेते हैं?
कि
गुरू
अपने शिष्यों से धन क्यो लेते हैं?
उत्तर
जो गुरू
अपने शिष्यों से, धन लेने की आकांक्षा रखता है वह दुकानदार है , गुरू नहीं
और
जो शिष्य,गुरू को
बिना गुरू दक्षिणा चुकाये
ज्ञान लेने का प्रयास करें
वह
कपटी व्यक्ति हैं, शिष्य नहीं।
जो गुरू
अपने शिष्यों से, धन लेने की आकांक्षा रखता है वह दुकानदार है , गुरू नहीं
और
जो शिष्य,गुरू को
बिना गुरू दक्षिणा चुकाये
ज्ञान लेने का प्रयास करें
वह
कपटी व्यक्ति हैं, शिष्य नहीं।
गुरू से ऊर्जा ली जाती है
और
पदार्थ ,
दक्षिणा रूप में दिया जाता है।
यह
शिष्य की विवशता है
कि वह अपने गुरू को धन के अतिरिक्त कुछ और नहीं भेंट कर सकता परतुं गुरू को यदि शिष्य से धन की आशा है तो वह शिक्षक होगा, गुरू नही।
और
पदार्थ ,
दक्षिणा रूप में दिया जाता है।
यह
शिष्य की विवशता है
कि वह अपने गुरू को धन के अतिरिक्त कुछ और नहीं भेंट कर सकता परतुं गुरू को यदि शिष्य से धन की आशा है तो वह शिक्षक होगा, गुरू नही।
उदाहरण
जब आप बिजली घर से बिजली लेते हो तो उसका भुगतान,बिजली से नहीं बल्कि बिजली के उपयोग से कमाई हुई धन राशि से कर सकते हो।
इसी तरह
गुरू की ऊर्जा का भुगतान, केवल पदार्थ से किया जा सकता है।
जब आप बिजली घर से बिजली लेते हो तो उसका भुगतान,बिजली से नहीं बल्कि बिजली के उपयोग से कमाई हुई धन राशि से कर सकते हो।
इसी तरह
गुरू की ऊर्जा का भुगतान, केवल पदार्थ से किया जा सकता है।
मेरा अनुभव
जो व्यक्ति तुमसे
धन मागें
उसे गुरू मत मानो
और
जिससे तुम कुछ मांगों
उसे
धन मन और तन दे दो।
धन मागें
उसे गुरू मत मानो
और
जिससे तुम कुछ मांगों
उसे
धन मन और तन दे दो।
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