Thursday, 19 March 2015

जैसे
"देहांत" के साथ
"देह" के सभी
रोग
"समाप्त" हो जाते हैं
उसी
प्रकार
ध्यान "उपलब्ध" होने पर
मन के सभी रोग समाप्त
हो जाते हैं।
"मनांत"(मन का अंत)
हो जाता है
और
पुनः देह में
जीने की
आवश्यकता नहीं होती।
"मनांत" ही ठीक "देहांत" है

मन का अंत ही "मोक्ष" है ।
 हमारे पास सबकुछ है
परंतु
"ईश्वर" के बिना
हमारा
सब कुछ
एक क्षण में ही
व्यर्थ हो जाएगा। 

इसका अर्थ यह हुआ 
हमें 
उसके "साथ" की आवश्यकता है।

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