अति बहुमूलय सूत्र
जब तक हमारे "भीतर" से कुछ उत्त्पन नहीं होता , "आत्मा"
उदास व "मन" अस्थिर रहता है I
यदि हमारे पास अपनी मेहनत से अर्जित की हुई नौकरी नही या अपने से बनाया हुआ घर नहीं , या आपने से उत्त्पन हुई संतान नहीं'
तब तक हमारी आत्मा अप्रसन्न और मन अस्थिर रहता है I
क्यों ?
क्योंकि
हर व्यक्ति की "आत्मा " स्वयं से कुछ "उत्पन्न" कर , पूर्णता अनुभव करती है।
स्मरण योग्य
जब तक हमारे "भीतर" से कुछ उत्त्पन नहीं होता , "आत्मा"
उदास व "मन" अस्थिर रहता है I
उदहारण
यदि हमारे पास अपनी मेहनत से अर्जित की हुई नौकरी नही या अपने से बनाया हुआ घर नहीं , या आपने से उत्त्पन हुई संतान नहीं'
तब तक हमारी आत्मा अप्रसन्न और मन अस्थिर रहता है I
क्यों ?
क्योंकि
हर व्यक्ति की "आत्मा " स्वयं से कुछ "उत्पन्न" कर , पूर्णता अनुभव करती है।
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